उत्तर बिहार: भूमि सुधार और धांधली
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A Raj Darbhanga property in Bihar. Darbhanga was not a princely state; it was a Zamindari. Yet it owned vast tracts of land in 4,500 villages in north Bihar, spread over 6,000 sq km. Its fabulous riches were a fine example of economic disparities in rural Bihar. Pic courtesy npnews24.Vast Disparity in Land Holdings in North BiharNK SINGH
तेलंगाना से गंगानगर और नक्सलबाड़ी से श्रीकाकुलम का इतिहास
बताता है कि इन तमाम आंदोलनों के मूल में बटाईदारों की दयनीय दशा – मालिक और
किसानों द्वारा उनके मौलिक अधिकारों कि उपेक्षा, मजदूरी में गड़बड़ी, भूमि वितरण में धांधली आदि रही है।
बिहार में 40 प्रतिशत से अधिक लोग भूमिहीन हैं। 30 प्रतिशत
लोगों के पार एक से पाँच एकड़ भूमि है। 20 प्रतिशत लोगों के पास पाँच से दस एकड़ तथा
सात प्रतिशत लोगों के पार 20 एकड़ भूमि है जबकि शेष तीन प्रतिशत के पास कुल भूमि का
30 प्रतिशत है।
पूर्णिया भारत के सर्वाधिक सताये हुए इलाकों में से है।
छोटे काश्तकार, जो अधिकांशतः बटाईदार हैं, साधारणतः रिकार्ड नहीं किए गए हैं।
हालांकि 1950 के आरंभ में जब जमीन के नक्शे तैयार किए जा
रहे थे, वे रिकार्ड किए गए थे। लेकिन भू-स्वामियों ने उनके अधिकारों को चुनौती दी
और 4,500 मुकदमे बटाईदारों के खिलाफ कोर्ट में दर्ज किए गए हैं।
1968 में जब प्रथम संविद सरकार ने ‘बटाईदारी कास्त’ में
संशोधन करने कि कोशिश कि तो जमींदारों ने सावधानी बरतने के लिए लाखों बटाईदारों को
बेदखल कर दिया।
पूरे राज्य में भूमिहीन मजदूरों की संख्या 23 प्रतिशत है।
चंपारण में उनकी तादाद 37 प्रतिशत है। लगभग पाँच प्रतिशत लोगों के पास कुल कास्त
का 33 प्रतिशत रकबा है। एक गैर सरकारी आँकड़े के मुताबिक जिले की 33 लाख जनसंख्या
में से 12 लाख के पास जमीन नहीं है।
चंपारण में नील की खेती करने वाले अंग्रेज अपने पीछे
1,45,700 एकड़ जमीन छोड़ कर गए थे, जिसमें से अधिकांश छोटे-छोटे किसानों से जबरदस्ती
छीना गया था।
बाद में चंपारण के चीनी मिलों के मालिक, जमींदार, नौकरशाह
और काँग्रेस के नेताओं ने पुनः इसकी छीना-झपटी कर ली। जिले की 9 चीनी मिलों ने
(जिनके मालिक बिड़ला, साहू-जैन आदि हैं) पिछले पाँच वर्षों में 40,000 एकड़ जमीन
अपने कब्जे में कर ली है।
जिले में 28 बड़े फार्मों के मालिक काँग्रेस नेता हैं। बड़े
जमींदारों में बिलासपुर, शिकारपुर, बड़गाँव के जमींदारों के पास लाखों एकड़ जमीन है।
1920, 1922 और फिर 1928 में बगहा थाना के अंतर्गत बेतिया राजा के शिकारगाह के
वास्ते जिन अनेक गॉवों को उजाड़ दिया गया था उन्हे अभी तक नहीं बसाया गया है।
Excerpts from Muktadhara 25
April 1970
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