काम-काजू बच्चे : 'हम फुटपाथ पर आँख खोला', 'पता नहीं अमीर-गरीब क्यों?'
टोकरियों में बैठी मानवता: घूरे के दिन भी जागेंगे!
NK SINGH
देश में कितने ऐसे बच्चे हैं, जिन्होंने स्कूल का मुंह नहीं देखा। जिन्हे बचपन को जी भर कर निहारने कर मौका नहीं मिला। इनकी धधकती जठराग्नि ऐसी होती है जिसमें सारे अरमान जल कर राख हो जाते हैं। काम का बोझ नाजुक कंधों को तोड़ देता है। ये काम-काजू बच्चे हैं।
कानून में 15 वर्ष से कम उम्र वालों को काम के लायक नहीं समझा जाता। इस काम-काजू लड़के-लड़कियों की अपनी दुनिया है -- अंधेरी दुनिया। जेब काटने से लेकर जूठी प्लेटें धोने, ईंट ढोने से लेकर सर पर मैला धोने और भीख मांगने से लेकर शरीर बेचने तक के काम की दुनिया।
काम-काजू बच्चों पर पैट्रीअट (हिन्दी) के 11 जनवरी 1970 के अंक में छपी रपट
A feature about working children published in Patriot (Hindi), 11 January 1970
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Patriot (Hindi) 11 January 1970 |
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